August 29, 2013 बाँसुरी की विशेषता - परम पूज्य सवामी तेजोमयानन्दजी (English translation below) गोपियाँ तो जलती थीं इस बाँसुरी से । बोले हमारे अधिकार को छीनती है यह बाँसुरी । इन होठों पर हमारा अधिकार है । लेकिन जब तक यह बाँसुरी उनकी होठों पर लगी रहती है, तब तक हमें तो इनका अास्वादन मिलता ही नहीं । भगवान की ऐसी प्रीति है इसके ऊपर कि सदा इसे कमर में खोंस कर रखते हैं । वे इसे इधर-उधर कहीं नहीं रखते । एक ने उससे पूछा, "ऐ बाँसुरी, तूने क्या पुण्य किया था जो भगवान् तुझे अपने साथ रखते हैं?" बोले, "मैं धूप में तपती रही हूँ, तुमको पता है?" देखो बाँसुरी बनने के पहले तो वह बाँस के रूप में रहती है । बाँस का पेड़ पहले जमीन में रहता है, फिर बाहर अाकर वह सूरज की गरमी, धूप, बारिश अादि सब सहन करता है । बाँस का वृक्ष जब बढता है तो इसे सब सहन करना पडता है कि नहीं? कितना तप करता है वह । इतना तप करने के बाद फिर उसको उखाडते हैं, काटते हैं, वह सब भी उसे सहन करना पडता है । फिर उसमे छेद करते हैं । एक ही नहीं, सात-सात छेद कर डालते हैं । अब बताओ, कोई हमारे ऊपर छिद्र बनाने लगे तो हमें कैसा लगे...
An exploration of what the Gita means for us in our daily lives. With frequent reflection, Krishna's wisdom in the Gita can come alive in our daily lives. We'll also look at how the Gita is handled in contemporary media, movies, sport, etc.
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः | Without expectation, ego or excitement, fight!